—- थोड़ा हक़ —-

थोड़ा हक़ तो जताया था तुमने
थोड़ा रोकर हंसाया था तुमने
हमसफ़र थे एक ही मंजिल के
फिर कियूं ठोकरों में खुद को
तनहा पाया था हमने
ना जाने फिर कियूं ये
हमें अहसास हुआ था
सब तो
ठीक था तो फिर
क्या हुआ जो यूँ हीं
अपना दामन छुड़ाया था तुमने.

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