—– तू कियूं सताती है मुझे —–

तू कियूं सताती है मुझे तू कियूं रुलाती है मुझे टूटकर मेरी चाहत भी पूछती है यूँ तुझसे क्या हुआ है अब भी दिन वही है है रात भी अब भी वही फिर क्या हुआ सताती उन धड़कनों से पूछ ले तू ज़रा तू वहीँ है मैं भी वहीँ हूँ फिर वक़्त कियूं है तनहा कियूं अकेला ही टिक-टिक कर चल रहा है अँधेरी रात भी है ढल रही है है एक नया सवेरा हो रहा रूठ मत तू सपना नया तू देख ले रात फिर आएगी एक नया सवेरा लाएगी झूम ले तू चूम ले तू
नई किरणों को देख ले नई लाली लाल है सब तू भी अब सिन्दूर बन सजा दे मांग उसकी जो तड़प रही है कई रातों से अब तलक तेरे लिए...

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