—— चार लाख की रोटी ——

—— चार लाख की रोटी ——

अखबारों में मैंने पढ़ा था
और छः लाख का प्लेसमेंट
आखों में गड़ा था
यही देख मैं झासों में पड़ा था
ऍम बी ए का भूत जो सर पे चढ़ा था
यूँ तो पैसे की कमी थी
पर उधार देने को बैंक भी खड़ा था
एडमिशन कहीं और क्लासेज कहीं और था
फिर भी दिल में उमंग और मन में भरा जोश था
हो जाएंगे बर्बाद इसका किसे होश था
इस ऍम बी ए की भीड़ में दिल मेरा खामोश था
ज़ज्बात थे बेकाबू और आखों में भरा रोश था

नए-नए चेहरों से हुए हम रू-ब-रू
प्रेजेंटेशन और असाइनमेंट का
होने लगा किस्सा शुरू
ओ जे टी के लिए भी
कंपनियां भी आई बहुत गुरुकहीं डी-मैट था खोलना
तो कहीं इन्सुरेंस था बेचना
मुफ्त के एम्प्लोयी थे
काम था झूठ बोलना
छुट गई नौकरी हुए हम बेरोजगार थे
फिरा था आशाओं पर पानी
कियूं की हम बेकार थे

थर्ड सेमेस्टर के बाद एक बात समझ में आई है
चार लाख की लोन की रोटी हमने जो सेकवाई है
इस कॉलेज में नौकरी दिलाने एक न कंपनी आई है
छः लाख की झूठी प्लेसमेंट कॉलेज ने दिखलाई है

ऍम बी ए का होगा ये हश्र
कहाँ किसने जाना था
रो रहे थे हम
और ई है
हंस रहा ज़माना था
खोज रहे थे नौकरी
नसीब में कहाँ पाना था
इस गम को मिटाने
अब तो जाना मैखाना था

सपने गए बिखर
अब हकीकत सामने आई है
इस ज़ालिम दुनियां में
बेरोजगारों की होती कहाँ सगाई है
पैसे वसूली के लिए अब बैंक की चिठ्ठी आई है
झूठ ना समझना भाइयों इस बात में सच्चाई है
कियूं की ……..
चार लाख की लोन की रोटी हमने जो सेकवाई है

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